Skip to content Skip to footer
our history

।। गया जी तीर्थ पुरोहित पंडित गोकुल दुबे ।।

नमो नारायण । मैं गया जी तीर्थ पुरोहित पंडित गोकुल दुबे ,बिहार बंगाल ,उत्तरप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,राज्स्थान झारखण्ड ,व अन्य हिंदी भाषी क्षेत्र तथा अप्रवासी भारतीय औऱ हिन्दू सनातन धर्म को मानने वाले बंधुओं के लिये गयाजी तीर्थ पुरोहित पंडा जी हूँ ।

ॐ नमो नारायणाय ॐ गदाधराय नमः

पृथ्वियां च गया पुण्या गयायां च गायशिरः।श्रेष्ठम तथा फल्गुतीर्थ तनमुखम च सुरस्य हिं।। श्राद्धरम्भे गयायं ध्यात्वा ध्यात्वा देव गदाधर ।स्व् पितृ मनसा ध्यात्वा ततः श्राद्ध समाचरेत ।। श्री गया तीर्थ कि महिमा तो अनन्त हैं जिसका उल्लेख हमें समस्त पुराणों में मिलता है । गया तीर्थ श्राद्ध श्रेष्ठ पावन भूमि है यहाँ भगवान विष्णु नारायण गदाधर विष्णु पाद के रूप में स्थित है ।जो अपनी शक्ति से सभी प्रकार के पापो का नाश कर मनोनुकूल फल प्रदान करते है ,तथा उनके सभी असंतृप्प्त पितरों को तृप्ति मुक्ति प्रदान करते है ।

शास्त्रो में मुक्ति प्राप्ति के मार्ग प्रशस्त किए है ।जिसमे सबसे सुलभ एवम उपयुक्त्त गया श्राद्ध है ब्राह्मज्ञानम गयाश्राद्धम गोगृहे मरणं तथा , वासः पुसाम कुरुक्षेत्रे मुक्तिरेषां चतुर्विधा । ब्रह्मज्ञानेंन किंम कार्य: गोगृहे मरणेन किंम, वासेंन किं कुरुक्षेत्रे यदि पुत्रो गयाम व्रजेत।। पुत्रो को गया तीर्थ पुत्र होने कि संज्ञा और अधिकार देता है ।

गया श्राद्ध करना पुत्र का कर्तव्य है।ऐसा न करने पर उनके पितर और शास्त्र दोनों ही पुत्र होने की संज्ञा नहीं देते ।शास्त्रो के श्लोकानुसार पुत्र का कर्तव्य निर्धारित है श्लोक – जीवते वाक्यकरणात क्षयायः भूरी भोजनात।

गयायां पिंडदानेषु त्रिभि पुत्रस्य पुत्रता (गरुड़ पुराण ,स्कन्द पुराण ) जीवित अवस्था में माता पिता के (वाक्य ) आज्ञा का पालन करना प्रथम कर्तव्य है ,मरणोपरांत भूरी भोजन कराना द्वितीय कर्तव्य है , तथा गया श्राद्ध करना तृतीय कर्तव्य है श्लोकानुसार इन तीनो कर्तव्यों का निर्वहन करने पर ही पुत्र को पुत्रत प्राप्त होती है,अन्यथा वे पुत्र कहलाने योग्य नहीं । पु0 नाम नरकाय त्रायते इति पुत्र : (गरुड़ पुराण ) पुत्र वही है जो अपने पितरों को पु0नाम नामक नर्क से मुक्ति दिलाता हो । अतः मानव का परम कर्तव्य है कि पितृगणों के उद्धार एवं प्रसन्नता के निमित्त गया श्राद्ध करे अवश्य करे और अपने पुत्रत्व को सार्थक बनाये ।

शास्त्रों में वर्णित गया -श्राद्ध का लाभ भौतिक जीवन के आशातीत आकांक्षाओ से भी अधिक लाभ है उदाहरणतः वह कार्य जो एक मानव का भूप नरेश होने पर भी कर पाना उसके लिये संभव नहीं है ।कुछ ऐसा ही फलदायीं है गया श्राद्ध । ततो गया समासध बर्ह्मचारी समाहितः। अश्वमेधवाप्नोति कुलः चैव समुद्धरेत।।(वायु पुराण ) जो व्यक्ति गया जाकर एकाग्रचित हो विधिवत ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है वह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है एवं समस्त कुलों का उद्धार करता है आयु : प्रजा : धनं विधां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च । प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितर: श्राद्धप्रिता ।।(मार्कण्डे पुराण याज्ञ स्मृति) श्राद्धकर्ता को उनके पितर द्रिघायु ,संतति ,धनधान्य , विद्या राज्य सुख पुष्टि ,यश कृति ,बल, पशु ,श्री ,स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते है

भगवान विष्णु के नाभिकमल ब्रह्मा जी उत्पन हुए और उन्होंने सृष्टि की ।उन्होंने आसुर भाव से असुर की तथा उदारभाव से देवताओं की उत्पत्ति की थी ।उन असुरों में महाबलवान ,पराक्रमी गयासुर हुआ । वह विशालकाय था शास्त्रों के मतानुसार इसका शरीर सवा सौ योजनों का था ,मोटाई साठ सहस्त्र योजनों की थी ।वह भगवान विष्णु का परम भक्त था ।कोलाहल पर्वत के सुन्दर गिरी स्थान पर उसने दारूण तपस्या की थी ।उसने अनेक सहस्त्र वर्षो तक अपने साँसे रोक स्थित रहा उसके दारूण तपस्या को देख देवगण बहुत संतप्त औऱ क्षुब्ध हुए ,

अतः देवगणों ने ब्रह्मा जी के पास जाकर निवेदन किया कि गयासुर से हमलोगों की रक्षा कीजिये ,देवताओं की आर्तवाणी सुनकर ब्रह्मा जी ने सभी देवों से श्री महादेव के पास चलने को कहा – ब्रह्मा जी सहित सभी देव कैलाश महादेव के पास पहुँचे व महादेव से रक्षा हेतु प्रार्थना की तब महादेव ने सबों को श्रीहरि विष्णु जी के पास चलने को कहा सभी क्षीर सागर पहुचे भगवान विष्णु की स्तुति कर प्रार्थना की और रक्षा हेतु निवेदन किया ,श्री हरि ने आश्वासन दिया और सभी देवगण ब्रह्मा विष्णु महेश समेत गयासुर के पास पहुच गयासुर से कहा -गयासुर तुम यह तपस्या का कारण क्या है हम सन्तुष्ठ है अपनी इच्छा व्यक्त करो ,

गयासुर सभी देवताओं को अपने समक्ष देख प्रार्थना की औऱ कहा कि अगर आप सन्तुष्ट है तो मेरी यह कामना है कि द्विजातियों ,यज्ञों ,तीर्थो ,पर्वर्तीय प्रांतो से भी यह मेरा शरीर पवित्र हो जाए ,तब श्रीहरि समेत सभी देवताओं ने कहा कि तुम अपनी इच्छा के अनुरूप ही पवित्रता का लाभ करो ।

गयासुर के इस अद्भुत कार्य से तीनों लोक व यमपुरी सुनी हो गई । पुनः देवगणों की व्याकुलता बढ़ी गई ,और सभी वासुदेव के पास पहुँचे औऱ कहा -तीनो लोक सुना हो गया है तब वासुदेव ने कहा – आप लोग गयासुर का शरीर पर यज्ञ करने हेतु गयासुर से निवेदन करे ,गयासुर के पास पहुच सभी देवों ने ऐसी ही इच्छा प्रकट की तब गयासुर ने कहा -हे देव देवेश यदि आप हमारे शरीर पर यज्ञ करेगे तो हमारा पितृ कुल कृत्य कृत्य हो जाएगा ।आपने ही तो इतनी अपूर्व पवित्रता की प्रदान की है ।यह याग्य अवश्य सम्पन होगा ।

गयासुर के शरीर पर यज्ञ प्रारम्भ हुआ ,ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर यज्ञ सम्पन किया गया फिर सभी ने देखा कि यज्ञ भूमि यानी गयासुर का शरीर चलायमान हो रहा है तब ब्रह्मा जी धर्मराज को आदेश किया कि आपके यमपुरी में जो धर्मशीला है लाओ औऱ गयासुर के सिर पर स्थापित करो धर्मराज ने ऐसा ही किया परन्तु वह असुर शिला समेत विचलित हो गया ,तबब्रह्मा जी ने श्री विष्णु की प्रार्थना की और सारी घटनाए व्यक्त की ।

तब श्री हरि विष्णु गयासुर के मस्तक पर रखी शिला के उपर स्वमेवभगवान जनार्दन ,पुंडरीकाक्ष गदाधर के रूप में अवस्थित हो गये तब गयासुर स्थिर हुआ और कहा -क्या मैं भगवान विष्णु के वचन मात्र से निश्चल न हो जाता मैं भगवान विष्णु के गदा द्वारा पीड़ित हो चुका हूं आप देव प्रसन्न रहे ,गयासुर के इन बातों से सब देव प्रसन्न हुए औऱ कहा -इच्छा अनरूप वर मांग लो तब गयासुर ने कहा -जब तक पृथ्वी का अस्तित्व है मेरे इस शरीर पर ब्रह्मा विष्णु महेश का निवास स्थान बना रहे ,इस क्षेत्र की प्रतिस्ठा मेरे नाम से हो ,गया क्षेत्र की मर्यादा पांच कोश की व गयासिर की मर्यादा एक कोश की हो इन दोनों के मध्य मानव हितकारी समस्त तीर्थो का निवास हो इस बीच मे स्नानदिकर तर्पण ,पिंडदान करने से महान फल प्राप्ति हो ,इस क्षेत्र में पिंडदान करने वाले मनुष्यो सहस्त्र कुलों का उद्धार हो ,

आप लोग व्यक्त ,अव्यक्त रूप धारण कर इस शिला पर विरजमान रहे ऐसा वरदान आप लोग हमें प्रदान करें । देवताओं ने इस ही वर दिया और अपने निज स्थान को प्रस्थान हुए ।तब से गया श्राद्ध श्रेष्ठभूमि है और विष्णुपाद चिन्ह अवस्थित है ऐसा अन्यत्र कोई तीर्थ नही ।

गया तीर्थ पुरोहित – पंडित गोकुल दुबे गया जी संपर्क सूत्र 9334720974 ,7781959952